Property Rule – भारत में हमेशा से यही परंपरा रही है कि मां-बाप अपनी पूरी कमाई और जमा पूंजी अपने बच्चों के नाम कर देते हैं। उन्हें भरोसा होता है कि जब वे बुजुर्ग हो जाएंगे, तो बेटा या बेटी उनका ख्याल रखेंगे। लेकिन अफसोस, अब ऐसा हमेशा नहीं होता। जैसे ही बच्चों के नाम पर प्रॉपर्टी हो जाती है, कई बार उनका व्यवहार ही बदल जाता है। वे अपने माता-पिता को बोझ समझने लगते हैं, न उनकी देखभाल करते हैं और न ही उनका सम्मान।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मां-बाप अपने बच्चों को दी हुई संपत्ति वापस ले सकते हैं? जवाब है – बिल्कुल हां।
2007 में बना कानून – अब मां-बाप भी ले सकते हैं बड़ा कदम
सरकार ने साल 2007 में एक अहम कानून बनाया था, जिसका नाम है – वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम। इस कानून का मकसद साफ था – बुजुर्गों को उनका हक और इज्जत दिलवाना। इस कानून के तहत अगर कोई बेटा या बेटी अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता, और फिर भी उनके नाम प्रॉपर्टी है, तो माता-पिता उसे वापस ले सकते हैं।
धारा 23 है बेहद खास
इस कानून की धारा 23 में साफ लिखा है कि अगर मां-बाप ने अपने बच्चों को इस भरोसे पर संपत्ति दी थी कि वे उनकी देखभाल करेंगे और अगर संतान उस जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम रहती है, तो वह ट्रांसफर रद्द हो सकता है।
मतलब, अब सिर्फ संपत्ति ट्रांसफर होने से कोई मालिक नहीं बन जाता। अगर सेवा नहीं की, तो मां-बाप उसे कानूनी तौर पर वापस ले सकते हैं।
कोई लंबी कोर्टबाजी नहीं – सीधा SDM के पास जाएं
सबसे अच्छी बात ये है कि इसके लिए किसी हाईकोर्ट या लंबी कानूनी लड़ाई की जरूरत नहीं है। बुजुर्ग सीधे अपने जिले के SDM यानी उपखंड अधिकारी के पास आवेदन दे सकते हैं। एसडीएम उस केस की जांच करता है और अगर साबित होता है कि संतान ने सेवा नहीं की, तो संपत्ति का ट्रांसफर रद्द किया जा सकता है।
लिखित समझौता जरूरी नहीं
कुछ लोग सोचते हैं कि अगर प्रॉपर्टी देने के वक्त कोई लिखित समझौता नहीं हुआ था, तो अब क्या किया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर यह दिखाया जा सके कि संपत्ति सेवा की नीयत से दी गई थी और अब माता-पिता की अनदेखी हो रही है, तो भी संपत्ति वापस ली जा सकती है।
कोर्ट के कई फैसले भी इसी दिशा में रहे हैं – जहां व्यवहार, परिस्थितियां और बुजुर्गों की स्थिति को देखकर संपत्ति का ट्रांसफर रद्द किया गया है।
ये सिर्फ कानूनी नहीं, नैतिक मुद्दा भी है
ये मामला सिर्फ कानून का नहीं है, यह एक नैतिक सवाल भी है। कोई भी बेटा या बेटी यह सोचकर आराम से नहीं बैठ सकता कि अब तो प्रॉपर्टी उनके नाम हो गई, उन्हें कुछ करने की जरूरत नहीं।
अब समय बदल गया है। समाज भले ही चुप हो जाए, लेकिन कानून अब बुजुर्गों के साथ खड़ा है। अगर बेटा या बेटी सेवा नहीं करते, तो माता-पिता संपत्ति को वापस ले सकते हैं और उसे किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं या खुद के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
अगर आप भी इसी स्थिति में हैं, तो ये करें
अगर कोई बुजुर्ग अपने ही बच्चों से उपेक्षा झेल रहा है, तो उसे घबराने की जरूरत नहीं। वह सीधा एसडीएम ऑफिस जाए और आवेदन दे कि संपत्ति सेवा की शर्त पर दी गई थी लेकिन अब सेवा नहीं मिल रही।
जांच के बाद अगर बात सही पाई गई, तो ट्रांसफर रद्द हो सकता है और प्रॉपर्टी दोबारा माता-पिता के नाम की जा सकती है।
कुछ ताजा मामलों ने मिसाल कायम की है
देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बुजुर्गों को उनकी संपत्ति वापस मिली है। एक केस में एक बेटे ने अपनी मां को ही घर से निकाल दिया था, जबकि वह घर मां ने गिफ्ट डीड के जरिए बेटे को दिया था। कोर्ट ने गिफ्ट डीड रद्द कर दी और मां को घर लौटा दिया।
अब ऐसे केस तेजी से सामने आ रहे हैं, क्योंकि बुजुर्ग अब जागरूक हो रहे हैं और अपने हक के लिए आवाज उठा रहे हैं।
कहावत है – जैसा करोगे, वैसा भरोगे। अगर संतान अपने माता-पिता की सेवा नहीं करती, तो उसे सिर्फ भावनात्मक ही नहीं, बल्कि अब कानूनी नुकसान भी भुगतना पड़ेगा।
वरिष्ठ नागरिक कानून अब बुजुर्गों को वो ताकत दे रहा है, जिसकी उन्हें बरसों से जरूरत थी – सम्मान से जीने की ताकत।
अब वक्त आ गया है कि हर बेटे-बेटी को यह समझना चाहिए कि मां-बाप कोई बैंक नहीं हैं जो सिर्फ संपत्ति ट्रांसफर करें। वे जीवन भर की कमाई हैं, और उनकी सेवा करना हमारी जिम्मेदारी है।