Property Dispute – आज के वक्त में प्रॉपर्टी को किराये पर देकर कमाई करना एक आम बात बन चुकी है। छोटे शहरों से लेकर बड़े मेट्रो सिटीज़ तक लोग अपनी खाली पड़ी जमीन या मकान को किराये पर देकर अच्छी-खासी रेंटल इनकम कमा रहे हैं। बहुत से फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी अपनी प्रॉपर्टीज को किराये पर देकर मोटा पैसा बना रहे हैं। लेकिन जितनी फायदेमंद ये कमाई लगती है, उतना ही रिस्क भी इसमें छिपा होता है।
कई बार बिना सोचे-समझे प्रॉपर्टी किराये पर देना भारी पड़ सकता है। कुछ ऐसे कानूनी मामले होते हैं, जिनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते और बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। अगर आप भी मकान मालिक हैं या अपनी प्रॉपर्टी किराये पर देने का प्लान बना रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए बेहद जरूरी है।
क्या है प्रतिकूल कब्जा यानी Adverse Possession?
अब आपको बताते हैं एक ऐसे कानूनी प्रावधान के बारे में जिसका नाम है – प्रतिकूल कब्जा। ये शब्द सुनने में थोड़ा कानूनी लगता है, लेकिन बात बिल्कुल सीधी है। अगर कोई व्यक्ति आपकी जमीन या मकान पर लगातार 12 साल तक रह रहा है और इस दौरान आपने कोई दावा या कानूनी कार्रवाई नहीं की, तो वह व्यक्ति उस प्रॉपर्टी का मालिक बन सकता है।
ये कानून भारत के सीमा अधिनियम 1963 के तहत आता है। इस स्थिति को प्रतिकूल कब्जा कहा जाता है यानी एक ऐसा कब्जा जो मालिक की मर्जी के खिलाफ हो, लेकिन समय के साथ कानूनी रूप से वैध माना जाने लगे।
किरायेदार कैसे बन सकता है मालिक?
अब आप सोच रहे होंगे कि किरायेदार तो आपकी मर्जी से रहता है, तो फिर वो कैसे कब्जा कर सकता है? दरअसल, जब किरायेदारी की मियाद खत्म हो जाती है और इसके बावजूद वो व्यक्ति मकान में बना रहता है और आप भी कुछ नहीं करते, तो धीरे-धीरे उसका कब्जा कानूनी रूप से मजबूत होता चला जाता है।
अगर आपने 12 साल तक किरायेदार को बेदखल करने की कोई कोशिश नहीं की, न ही कोर्ट में कोई मामला डाला, और उस दौरान उसने लगातार उस प्रॉपर्टी पर कब्जा बनाए रखा, तो वो व्यक्ति कोर्ट में जाकर कह सकता है कि अब ये प्रॉपर्टी उसकी हो गई है।
कब होती है कब्जे की गिनती?
Adverse possession की गिनती तभी शुरू होती है जब किरायेदार की लीज या रेंट एग्रीमेंट खत्म हो जाए और वो उसके बाद भी बिना आपकी अनुमति के वहां रहना शुरू कर दे। अगर आपने उसे रहने दिया, किराया भी नहीं लिया और न ही कोई कानूनी नोटिस भेजा, तो कानून मान सकता है कि आपने स्वामित्व छोड़ दिया है।
ध्यान देने वाली बात ये है कि कब्जा निरंतर, निर्विघ्न और जानबूझकर होना चाहिए। मतलब किरायेदार का वहां रहना लगातार हो, बिना किसी रुकावट के हो और आपके विरोध के बावजूद हो।
सरकारी जमीन पर भी हो सकता है दावा
आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसा सिर्फ निजी प्रॉपर्टी के साथ नहीं होता, बल्कि सरकारी जमीन पर भी कोई व्यक्ति कब्जा जमाकर मालिक बनने का दावा कर सकता है। हालांकि इसके लिए समयसीमा ज्यादा होती है – करीब 30 साल।
अगर कोई व्यक्ति 30 साल तक सरकारी या सार्वजनिक जमीन पर बिना किसी रोकटोक के रहता है, तो वो भी कानून के तहत मालिकाना हक मांग सकता है। लेकिन ये प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है और सरकार अक्सर इस पर आपत्ति जताती है।
कैसे बचें इस कानूनी झंझट से?
अब सवाल उठता है कि मकान मालिक खुद को और अपनी प्रॉपर्टी को इस तरह के खतरे से कैसे बचाए। इसके लिए कुछ आसान लेकिन जरूरी बातें हैं, जिनका पालन करना चाहिए –
- सही एग्रीमेंट करें
किरायेदार से एक स्पष्ट और लिखित रेंट एग्रीमेंट बनवाएं जिसमें समयसीमा, किराया, शर्तें सब कुछ साफ लिखा हो। बिना एग्रीमेंट किसी को जगह न दें। - टाइम टू टाइम निगरानी रखें
प्रॉपर्टी को समय-समय पर जाकर देखें, बात करें, पता करें कि किरायेदार वहां है या कोई और, और क्या नियमों का पालन हो रहा है। - प्रॉपर्टी टैक्स और दस्तावेज अपडेट रखें
हर साल प्रॉपर्टी टैक्स जमा करें और कागज़ातों में अपना नाम और मालिकाना हक सही दर्ज कराएं। - समस्या हो तो फौरन कानूनी कदम उठाएं
अगर किराया नहीं मिल रहा है, एग्रीमेंट खत्म हो गया है या किरायेदार हट नहीं रहा, तो चुप न बैठें। तुरंत वकील की सलाह लें और लीगल नोटिस भेजें।
किराये की आमदनी जरूर अच्छी होती है, लेकिन उसकी सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है। मकान मालिक को हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहिए, ताकि बाद में कोई कानूनी पचड़ा न हो। थोड़ी सी लापरवाही आपकी प्रॉपर्टी पर से आपका हक भी छीन सकती है। इसलिए किसी को भी जगह देने से पहले सारे कानूनी दस्तावेज सही करवाएं, निगरानी रखें और जरूरत पड़ने पर तुरंत कार्रवाई करें।